अच्छी सेहत का गुरूमंत्र: हैपीनेस गुरू पी. के. खुराना
अच्छी सेहत का गुरूमंत्र: हैपीनेस गुरू पी. के. खुराना
उद्यम और निवेश में सम्राट का सा दर्जा रखने वाले खरबपति निवेशक राकेश झुनझुनवाला रविवार 14 अगस्त को स्वर्ग सिधार गये। माना जाता है कि वे 45 हज़ार-करोड़ की संपत्ति के मालिक थे, जिसका मतलब है कि वे 4 खरब, 50 अरब की संपत्ति के मालिक थे। वे अरबपति ही नहीं, बल्कि खरबपति थे। उन्हें भारत का वारेल बफे कहा जाता था। स्टॉक मार्केट के जिस शेयर में वे निवेश करते थे, लाखों लोग उस शेयर पर झपट पड़ते थे। स्टार हैल्थ एंड एलाइड इन्श्योरेंस कंपनी में उनका बड़ा निवेश था लेकिन वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न रह सके और महज 62 साल की उम्र में जीवन का दांव हार गये। वे शराब और सिगरेट के शौकीन तो थे ही, खानपान के मामले में वे कोई संयम नहीं बरतते थे। यही नहीं, व्यायाम के मामले में भी वे खुद को "आलसियों" की श्रेणी में ही रखते थे। व्यायाम का अभाव और खानपान की असंयमित आदतों के कारण उनका शरीर बीमारियों का घर बन गया था और वे चलने-फिरने तक से लाचार थे, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के समय भी वे अपनी कुर्सी से उठ नहीं पाये थे।
हैल्थ एंड हैपीनेस गुरू के रूप में अपनी प्रसिद्धि के कारण मैं अक्सर ऐसे लोगों से मिलता हूं जो अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, खुश होना तो दूर की बात है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग करते समय मुझे एक और बात का भान हुआ कि इनमें से ज्यादातर लोग सेहतमंद नहीं हैं और सेहत की समस्या भी उनकी उलझनों का एक बड़ा कारण है। परिणामस्वरूप मेरा ध्यान इस ओर गया कि खुश रहने के लिए सेहतमंद होना भी एक आवश्यक घटक है। तब मैंने अपना ध्यान इस ओर लगाना शुरू किया कि हम अच्छा स्वास्थ्य कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं। अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए मैंने इस विषय पर कई डाक्टरों से बात की। इनमें एलोपैथ, होम्योपैथ, आयुर्वेदाचार्य, नैचुरोपैथ आदि सभी तरह के डाक्टर शामिल थे। इन से मिले ज्ञान पर मंथन के बाद मैंने अपनी बातचीत के दायरे में योगाचार्य और डायटीशियन को शामिल किया और तब समझ आया कि किसी योग्य शेफ के बिना यह दायरा अधूरा है। जब मैं हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक "दिव्य हिमाचल" के डायरेक्टर-मार्केटिंग पद पर रहते हुए तीन बार मेरी मुलाकात दलाई लामा के व्यक्तिगत फ़िज़िशयन डा. येशी डोंडेन से हुई थी। वे तिब्बतन हैल्थकेयर सिस्टम के अधिकारी विद्वान थे। उनसे मिली जानकारी अब मुझे काम आ रही थी, पर मैं पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाया था, यही कारण था कि मैंने अपना अध्ययन और खोज का क्रम बराबर बनाए रखा। अंतत: योग और प्राकृतिक चिकित्सा की बारीकियों को समझने पर जो जानकारी मिली, वह इतनी आश्चर्यजनक थी कि मैं स्तब्ध रह गया। अपनी जानकारी को पुष्ट करने के लिए मैं शोध में लगा रहा। जनसंपर्क और उद्यम से संबंधित अलग-अलग संस्थाओं से जुड़ा होने के कारण मैं जब किसी सेमिनार में जाता था तो लोगों के भोजन करने के तरीके पर विशेष रूप से नज़र रखता था। स्पष्ट है कि ये सभी लोग न केवल बहुत पढ़े-लिखे थे, अत्यधिक ज्ञानवान थे बल्कि अपने पेशेवर जीवन में भी बहुत सफल थे। मैंने इनमें से कई लोगों की जीवन शैली का बारीकी से अध्ययन किया तो मुझे समस्या की जड़ तक पहुंचने का अवसर मिला। सेहत के बारे में इन लोगों का ज्ञान अधकचरा था और सेहत को लेकर ये कई गलतफहमियों और खुशफहमियों के शिकार थे। घर में खाना बनाने वाली महिलाएं जो पूरे परिवार को संभालती हैं, स्वास्थ्यकर भोजन के मामले में उनका ज्ञान भी अधूरा था। जनसंपर्क के अपने मुख्य व्यवसाय के कारण मुझे देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध डायटीशियनों और खानसामाओं (शेफ) से बातचीत का भी मौका मिला। डायटीशियन अक्सर ऐसी डाइट सुझाते हैं जिसे जीवन भर के लिए अपनाना संभव नहीं होता। यही नहीं, डाइट का सिस्टम पूरे परिवार की इच्छाओं पर खरा नहीं उतरता। दूसरी तरफ नामचीन शेफ भी एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट खाना बनाने में सिद्धहस्त हैं, खाना बनाते समय साफ-सफाई के बारे में जागरूक हैं, लेकिन सेहत में योगदान दे सकने वाले भोजन पर उनका फोकस बिलकुल भी नहीं है। लोगों के खानपान और जीवनशैली पर मेरी खोजबीन का परिणाम यह है कि मैं दावा कर सकता हूं कि आज देश में पैदा होने वाले 99% बच्चे जन्म से ही कुछ न कुछ रोग लेकर आते हैं और युवावस्था तक आते-आते इन रोगों का संकेत मिलना शुरू हो जाता है। चालीस की उम्र तक पहुंचते न पहुंचते ये लोग किसी न किसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं और चिकित्सा जगत में व्याप्त मार्केटिंग के प्रभाव के कारण उनका गलत इलाज उनकी बीमारी को बढ़ाता चलता है।
स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियों के मामले में स्वास्थ्यकर भोजन के बारे में हमारा अज्ञान तो एक कारण है ही, हम इस तथ्य से भी अनजान हैं कि हम क्या खाते हैं, यह तो महत्वपूर्ण है ही, उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि खाये हुए भोजन में से हम कितना पचा पाते हैं। शरीर की बाहरी सफाई लेकर तो हम जागरूक हैं पर शरीर की अंदरूनी सफाई पर हमारा ध्यान नहीं के बराबर है। अच्छे स्वास्थ्य के व्यायाम के साथ-साथ पूरी और गहरी नींद भी आवश्यक है। यही नहीं, नींद के निश्चित समय का पालन भी उतना ही आवश्यक है। परिवार और समाज में हमारे रिश्ते हमारी सेहत के लिए जितने महत्वपूर्ण हैं, हमारी सेहत में हमारे खुशमिज़ाज स्वभाव का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
लब्बोलुबाब यह कि हम भोजन में सलाद और सब्जी की मात्रा बढ़ा दें और रात का भोजन हल्का-फुलका रखें। रात का भोजन आठ बजे तक हो जाना आदर्श स्थिति है। मोबाइल फोन और टीवी का प्रयोग रात 9 बजे के बाद न हो। रात दस बजे तक सो जाना अत्यंत लाभकारी है क्योंकि रात 10 बजे से सवेरे के 2 बजे के बीच हमारा मस्तिष्क मेलाटोनिन हार्मोन विसर्जित करता है जो गहरी नींद का कारण है। इसी दौरान शरीर में फैट को संतुलित रखने, बीमार कोशिकाओं की मुरम्मत और नई कोशिकाएं बनती हैं, हड्डियों की मुरम्मत होती है और स्मरणशक्ति की मजबूती का काम चलता है। शरीर की अंदरूनी सफाई न होना हमारे सभी रोगों का असली कारण है। योग और प्राकृतिक चिकित्सा में इनका स्पष्ट और विस्तृत प्रावधान है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय का योग प्रोटोकल संपूर्ण स्वास्थ्यकर जीवन का अच्छा उदाहरण है। जब हम अपने रिश्तों पर ध्यान देते हैं, छोटी-छोटी बातों में तुनकमिज़ाजी दिखाना बंद कर देते हैं, बिना कारण तनाव में नहीं आते, और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहकर जीवन बिताते हैं, तो हम खुश तो रहते ही हैं, जीवन में सफलता प्राप्त करके खुशहाल भी हो जाते हैं। अच्छी सेहत के लिए शरीर के साथ मन और मस्तिष्क का व्यायाम भी हितकर है। ताज़ी हवा और उगते सूर्य की किरणें हमारे अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी हैं। अच्छी सेहत का गुरूमंत्र इतना सा ही है।
राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त हैल्थ एंड हैपीनेस गुरू श्री पी. के. खुराना स्थापित स्तंभकार, लेखक, विचारक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।